‘साल 2017 की बात है. एक रोज पेट में हल्का सा दर्द उठा. उन दिनों मैं शराब पीता था. तो सोचा शायद गैस की वजह से ये दर्द उठा होगा. फिर एक बीयर और पी ली. उस रोज हम मसूरी में नाइट आउट के लिए जाने वाले थे. जब वहां पहुंचे तो दर्द तेज हो गया. अगले दिन हम सीधा डॉक्टर के पास पहुंचे. उन्होंने कुछ टेस्ट कराए. और रिपोर्ट्स आने पर बताया कि पेनक्रिएटाइटिस हुआ है.’
54 साल के हो चुके प्रशांत गोयल देहरादून के रहने वाले हैं. और लकड़ी का व्यापार करते हैं. प्रशांत के मुताबिक, आगे जो कुछ हुआ वो बहुत भयानक था. दरअसल, डॉक्टर्स ने प्रशांत की दवाएं शुरू कर दीं. और महज एक हफ्ते के बाद उन्हें यूके जाना था. जहां उनकी इकलौती बेटी पढ़ाई कर रही थी. यह ट्रिप तकरीबन 15 दिनों का था. जिस रोज वापसी थी, उससे चंद घंटे पहले पेट में बेतहाशा दर्द शुरू हुआ.
प्रशांत को नजदीकी अस्पताल ले जाया गया. उन्हें पेनकिलर्स दिए गए. लेकिन दर्द से राहत नहीं मिल रही थी. आखिर में डॉक्टर्स ने ये कहते हुए उन्हें आखिरी पेनकिलर दी कि इसके बाद अब कोई ऑप्शन नहीं है. प्रशांत बताते हैं कि उन्हें अगले दिन होश आया था. वहां तकरीबन एक हफ्ते तक उनका इलाज चला. फिर वापस भारत लौटे. दोस्तों, रिश्तेदारों को प्रशांत की इस हालत का पता चल चुका था. वह उन्हें देखने के लिए पहुंचने लगे.
एक नजदीकी दोस्त ने प्रशांत से कहा, ‘मेरे जानने वाले को पेनक्रिएटाइटिस हुआ था. उसने आयुर्वेदिक इलाज कराया. और अब सही हो चुका है.’ लगातार दर्द से जूझ रहे प्रशांत के लिए यह बात उम्मीद की एक किरण थी. उन्होंने गूगल पर पेनक्रिएटाइटिस के बारे में सबकुछ खोजना शुरू किया. ऐलोपैथी के साथ कुछ ठोस नतीजे नहीं मिल रहे थे. वहीं पड़ाव नाम की संस्था को लेकर लोगों ने बहुत पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया था. प्रशांत अगली रोज पद्मश्री से सम्मानित वैद्य बालेंदु प्रकाश के केंद्र ‘पड़ाव’ पर पहुंचे. यहां उनका इलाज शुरू हुआ.
प्रशांत कहते हैं,
‘तकरीबन एक साल तक मैं उस दर्द से गुजरता रहा. जब तकलीफ बढ़ती तो ना कुछ खाने का मन करता और ना सोने का. लेकिन पड़ाव में मौजूद वैद्य शिखा प्रकाश ने इस बीमारी से लड़ने में बहुत सपॉर्ट किया. वह हर वक्त मरीज की देखभाल के लिए मौजूद रहती थीं.’
पेनक्रिएटाइटिस के दौरान आप तो तकलीफ से गुजरते ही हैं. आपका परिवार भी इस मुश्किल वक्त को देखकर बहुत परेशान होता है. प्रशांत की पत्नी के लिए यह सबकुछ देख पाना आसान नहीं था. प्रशांत बताते हैं कि वह 17-18 दिन पड़ाव में रहे. यहां दवाइयों के साथ-साथ आपके खानपान पर बहुत ध्यान दिया जाता है. जैसे कि सुबह 9 बजे तक नाश्ता, 1 से डेढ़ बजे तक लंच, फिर 3-4 बजे तक स्नैक्स और 8 बजे तक डिनर करा दिया जाता है. वैद्य शिखा के प्रॉपर गाइडेंस और इलाज के साथ पेनक्रिएटाइटिस से राहत मिलना पॉसिबल है. जो लोग भी इस तकलीफ से गुजर रहे हैं, उन्हें बिना देरी किए हुए पड़ाव में कॉन्टैक्ट करना चाहिए ताकि जल्द से जल्द उन्हें दर्द से निजात मिल सके.
प्रशांत के मुताबिक, कुछ लोग कहते थे कि पेनक्रिएटाइटिस में वेट लॉस यानी वजन कम हो जाता है. तो मैं इन सभी सिम्प्टम्स पर बारीकी से नजर रख रहा था. जब शुरुआत में मैं पड़ाव पहुंचा तो मैंने वहां लोगों के रिव्यूज पढ़े. यह समझा कि कैसे लोग आठ-दस सालों से इस दिक्कत का सामना कर रहे थे और पड़ाव में उन्हें राहत मिली. ये सारी चीजें आपको पॉजिटिविटी से भर देती हैं. इलाज के लिए इच्छाशक्ति का मजबूत होना जरूरी है.