34 साल के निशांत दिल्ली के रहने वाले हैं. साल 2007 के अक्टूबर महीने में उन्हें पेनक्रिएटाइटिस डायग्नोस हुआ था. लेकिन इसके सिम्पटम्स उन्हें छह-सात महीने पहले से ही नजर आने लगे थे. जैसे कि पीठ की तरफ से दर्द उठता था. और कभी यह दर्द हल्का होता तो कभी बहुत ज्यादा. ऐसी अवस्था में चलना फिरना भी मुश्किल हो जाता.
निशांत बताते हैं, ‘उन दिनों मैं बाहर की चीजें बहुत खाता था. कुछ ऐसा हिसाब था कि सुबह हो या दोपहर, बाहर का ही खाना खा रहा हूं. तभी एक रोज पेट में दर्द हुआ. यह बैक की तरफ जा रहा था. दर्द के बीच अगर मैं पानी पीता तो उल्टी हो जाती. घरवाले मेरी यह हालत देख डर गए. पहले मुझे घर के नजदीक ही एक डॉक्टर को दिखाया गया. उन्होंने कुछ दवाएं दीं. लेकिन कुछ असर नहीं हुआ. दर्द और बढ़ता चला गया. फिर मुझे अस्पताल ले जाया गया. जहां कुछ इंजेक्शंस दिए गए ताकि दर्द से राहत मिल सके.’
पेनकिलर्स दिए जाने के साथ ही डॉक्टर्स ने निशांत का ब्लड टेस्ट कराया. जब रिपोर्ट्स आईं तो पता चला कि वह पेनक्रिएटाइटिस से जूझ रहे हैं. जिसके बाद आगे का इलाज शुरू हुआ. डॉक्टरों ने निशांत को एनजे ट्यूब लगा दी थी. वह कहते हैं, ‘उस ट्यूब से कुछ पानी जैसा निकलता रहता था. मुझे लगता था कि शायद गंदा पानी पीने की वजह से मुझे यह दिक्कत हुई है. क्योंकि कई बार तो उस ट्यूब से एकदम हरे रंग का पानी निकलता था. इसबार मैं 15 दिनों तक अस्पताल में रहा. और मेरा वजन लगातार घट रहा था.’
निशांत के मुताबिक, उन दिनों डॉक्टर्स का एक सवाल बहुत कॉमन था. क्या शराब पीते हो. और कितनी क्वांटिटी लेते हो. पर निशांत हर बार यही बताते कि उन्होंने आजतक शराब नहीं पी. कई वर्षों तक निशांत का इलाज चलता रहा. उनकी हालत दिनोंदिन खराब होती चली गई. 2013 के बाद तो एक ऐसा वक्त आ गया जब निशांत क्रियॉन नाम की टैब्लेट के आदी हो गए. 4 से 5 साल तक यह दवा खाई. और दवा छूटने पर निशांत को ऐसा लगता था कि जैसे कि उनकी जान चली जाएगी. निशांत खाना खाने से भी डरने लगे थे. उन्होंने आलू, प्याज, लहसुन भी खाना छोड़ दिया.
अब जब फिर दर्द उठता तो निशांत शुरुआत में उसे छिपाने की कोशिश करते. लेकिन जब दर्द छह सात घंटों तक बर्दाश्त नहीं होता तो घरवालों को बताते. घरवाले उन्हें अस्पातल ले जाते. जहां डॉक्टर्स सबसे पहले उनका खाना-पानी बंद कराते. पेनकिलर्स देते. जबतक दवा का असर रहता तबतक तो दर्द शांत रहता. और पेनकिलर्स का असर खत्म होते ही फिर दर्द शुरू हो जाता. निशांत कहते हैं, ‘यह सबकुछ देख-देखकर हिम्मत टूट चुकी थी. लगता था कि इस जिंदगी का अब क्या ही मतलब है. घरवाले कुछ काम कराने से डरते थे. दोस्तों ने भी बुलाना बंद कर दिया था. 2013 से 2018 का यह दौर बहुत भयावह था.’
निशांत की मानें तो उन्हें होम्योपैथिक और आयुर्वेदिक ट्रीटमेंट भी दिया गया. लेकिन उससे कोई राहत नहीं मिली. फिर निशांत के पिता को पद्मश्री बालेंदु प्रकाश जी के पड़ाव केंद्र के बारे में पता चला. निशांत से उन्होंने केंद्र चलने को लेकर बात की. इस पर निशांत ने शुरुआत में साफ मना कर दिया. निशांत के पिता गूगल, यूट्यूब जैसे अलग-अलग प्लैटफॉर्म्स पर लगातार पड़ाव के बारे में जानकारी जुटाते रहे. फिर किसी तरह निशांत को साथ चलने के लिए मना लिया. निशांत का कहना है, ‘शुरुआत में हम जिस आयुर्वेदा नाम की जगह पर गए थे. वहां से मेरी हालत और खराब हो गई थी. इस वजह से अब मुझे डर लग रहा था. लेकिन यह सच है कि पड़ाव पहुंचने के बाद वहां का एक्सपीरियंस मेरे लिए बिल्कुल अलग था.’
निशांत अपने साथ क्रियॉन जैसी दवाएं लेकर गए थे. क्योंकि उन्हें यह डर था कि अगर पड़ाव केंद्र में रहने के दौरान दर्द होता है तो क्या होगा. लेकिन वैद्य शिखा ने ऐलोपैथिक दवाएं बंद करने को कह दिया. इस बात से निशांत कुछ असहज हुए. उन्हें डर था कि दर्द हुआ तो…? खैर, वैद्य शिखा की बात मानते हुए उन्होंने ऐलोपैथिक दवाएं बंद कीं.
दोपहर का वक्त था. लंच की तैयारी चल रही थी. सामने थाली में तैयार शिमला मिर्च रखे थे. निशांत ने तकरीबन पांच सालों से मनपसंद खाना नहीं खाया था. और शिमला मिर्च उनकी फेवरिट. लेकिन निशांत को डर था कि कहीं इसे खाने पर फिर से पेट में दर्द ना उठ जाए. इस पर पड़ाव केंद्र में सामने से उन्हें कहा गया कि यह थाली आपके लिए ही है. ये आपको ही खाना है. निशांत ने कई सालों बाद अच्छे से खाना खाया. शुरुआती कुछ नियमों के साथ सात दिन गुजर गए. फिर निशांत से कह दिया गया कि अब उन्हें अगले कुछ दिनों तक खिचड़ी खानी है. क्योंकि स्टमक वॉश यानी पेट में मौजूद गंदगी को बाहर निकाला जाएगा. इसके साथ ही निशांत पड़ाव के डाइट शेड्यूल में शिफ्ट हो गए.
उन्हें सुबह 6 बजे उठना होता था. फिर उठकर पानी पीना. 8 बजे नाश्ता. 11 बजे के आसपास फिर कुछ खाने पीने को दिया जाता. शाम को 4-5 बजे स्नैक्स. इसके बाद रात का खाना. पड़ाव में ट्रीटमेंट के दौरान निशांत से कहा गया था कि आपको चार से पांच महीनों तक बेड रेस्ट पर रहना होगा. निशांत कहते हैं, दरअसल, यह वो चीज है जो आपको इलाज के दौरान खुद महसूस होगी. क्योंकि आप इतना कमजोर महसूस करते हैं कि बेडरेस्ट तो जरूरी हो जाता है. वहां का ट्रीटमेंट चलता रहा और निशांत बिल्कुल ठीक महसूस करने लगे. एकरोज जब वह पड़ाव केंद्र पहुंचे तो वैद्य शिखा ने उन्हें ठीक होने के लिए बधाई दी. उन्हें ट्रीट देने के लिए कैफे लेकर गईं. यहां उन्होंने निशांत से कहा, आप जो कुछ खाना चाहें वो खा सकते हैं. निशांत यह बात सुनकर हैरान थे. उस रोज निशांत ने पिज्जा ऑर्डर किया था. निशांत को इस बात का भरोसा मिल पाया कि वह आम जिंदगी में वापस लौट आए हैं. वह अब ऐसिडिटी जैसा नहीं महसूस करते. ना ही उन बुरे दिनों को दोबारा याद करना चाहते हैं. लेकिन पड़ाव और वैद्य शिखा के सहयोग के लिए उन्हें बार-बार शुक्रिया कहते हैं.