पेनक्रिएटाइटिस की समस्याओं से जूझ रहे लोगों के अनुभव अलग-अलग होते हैं, लेकिन हर किसी का अंत ‘पड़ाव’ से जुड़ता है, जहां उन्हें राहत मिलती है। यह कहानी मनीष कुमार गुप्ता की है, जो देहरादून के रहने वाले हैं और डीआरडीओ में टेक्निकल ऑफिसर के तौर पर काम करते हैं।
मनीष को पहली बार पेनक्रिएटाइटिस का अटैक जुलाई 2016 में आया। इलाज के बाद भी, दर्द बार-बार बढ़ता गया, और मनीष को समझ में आया कि उनकी डाइट में बदलाव की जरूरत है। डॉक्टरों ने उन्हें लोफैट डाइट अपनाने की सलाह दी, जो उन्होंने शुरू की, लेकिन समस्या लगातार बढ़ती रही। 2018 में दर्द फिर से हुआ, और मनीष ने चंडीगढ़ के पीजीआई अस्पताल में भी इलाज करवाया, हालांकि उन्होंने कभी भी शराब या धूम्रपान का सेवन नहीं किया।
मनीष को साल 2016 से 2023 तक 32 बार अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। इस बीच, एक दोस्त ने उन्हें ‘पड़ाव’ के बारे में बताया, जो मनीष के जीवन का मोड़ साबित हुआ। उन्होंने पद्मश्री वैद्य बालेंदु प्रकाश से इलाज शुरू किया, लेकिन कुछ समय बाद मनीष ने उपचार बंद कर दिया, जो उनकी गलती थी।
साल 2023 में, मनीष के परिवार ने उन्हें फिर से ‘पड़ाव’ भेजा। यहां के इलाज से मनीष को राहत मिली और उनका विश्वास फिर से जगा। वह कहते हैं, “एक समय ऐसा आया था कि मुझे यकीन नहीं था कि मैं आगे जिंदा रह पाऊंगा। लेकिन परिवार और ‘पड़ाव’ के सहयोग से मैं इस सोच से बाहर निकला।”
मनीष अब खुद पेनक्रिएटाइटिस के अन्य रोगियों को प्रेरित करते हैं। उनका कहना है, “पेनक्रिएटाइटिस में सबसे बड़ी चुनौती खाना है। आपको भरपेट नहीं खाना, बल्कि छोटे-छोटे हिस्सों में खाना है। एल्कोहल और स्मोकिंग से दूर रहना है। ‘पड़ाव’ में दिनचर्या का खास ख्याल रखा जाता है, जैसे सुबह पानी पीना, हल्की वॉक करना और नियमित समय पर छोटे-छोटे भोजन लेना।”
मनीष बताते हैं, “‘पड़ाव’ में सभी लोग एक-दूसरे के अनुभवों से सीखते हैं, और वैद्य शिखा हमेशा उपलब्ध रहती हैं, जो हर मरीज का पूरा ध्यान रखती हैं।”
यह कहानी विश्वास की है, जहां मनीष ने इलाज के दौरान विश्वास और परिवार के सहयोग से अपनी कठिनाइयों को पार किया और अब स्वस्थ महसूस करते हैं।