एक वक़्त था जब राशि को एक ऐसी बीमारी ने जकड़ लिया था जिसका नाम सुनते ही लोग सिहर उठते हैं। बात तब की है जब राशि करीब सात-आठ साल की थी। पेट में अचानक एक असहनीय दर्द उठा। ऐसा दर्द जो रह-रहकर आता था और घंटों तक बना रहता था। राशि बताती है, “ये दर्द मेरे पेट में होता था और मुझे बहुत तकलीफ होती थी। एक-दो घंटे के लिए थोड़ा आराम मिलता था, लेकिन पूरे समय आराम नहीं मिलता था।” तब डॉक्टरों ने ड्रिप लगवाने की सलाह दी। घर पर ड्रिप लगवाने से कुछ राहत मिली, लेकिन ये सिलसिला चलता रहा।
राशि बताती है, “कभी-कभी घर पर ड्रिप से आराम नहीं मिलता था, तो मुझे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ता था। स्कूल के दिनों में भी मुझे अक्सर पेट में दर्द होता था और उल्टियाँ भी हो जाती थीं, जिसके कारण मुझे स्कूल से घर आना पड़ता था। मैं हॉस्टल में रहती थी, वहाँ भी मुझे बार-बार दर्द होता था। लगभग एक-दो महीने के अंदर ही मुझे फिर से दर्द हो जाता था, और यह सिलसिला अब तक जारी है। पिछले साल, 2023 में भी मुझे कई बार दर्द हुआ और मुझे बार-बार अस्पताल जाना पड़ा।”
दर्द की यादें ताज़ा करते हुए राशि कहती है, “दर्द से मुझे बहुत डर लगता था, क्योंकि इसमें बहुत सारे इंजेक्शन और ड्रिप लगते थे।” राशि के पिताजी गाँव में ही शिक्षक हैं। उस वक़्त राशि पंद्रह साल की थी और दसवीं कक्षा में पढ़ती थी। वो अपनी इस बीमारी के बारे में बताती हुई कहती है, “मुझे यह समस्या बचपन से ही थी, लेकिन एक [यात्रा/इलाज] के बाद यह ज़्यादा बढ़ गई थी। एक साल में तीन-चार बार दर्द होता था।” तब उनके परिवार ने मुरादाबाद के एक डॉक्टर को दिखाया था, जिन्होंने एमआरआई कराने की सलाह दी। एमआरआई से पता चला कि राशि को पैंक्रियाटाइटिस है।
राशि बताती है, “पैंक्रियाटाइटिस में एक दर्द होता है, बहुत ही असहनीय। जब मुझे पहली बार हुआ था, तब मैं सात-आठ साल की थी। मेरे पेट में दर्द हुआ था, पहली बार जब मुझे महसूस हुआ। बहुत तेज़ दर्द हुआ था, यहाँ पर, पेट के ऊपरी हिस्से में। फिर वहाँ पर हमने ड्रिप लगाई, तो फिर ठीक हुआ था, ड्रिप लगाकर ही। भले ही ड्रिप लगाई है, तो वह ठीक नहीं होता है नॉर्मल से। वह बहुत ज़्यादा दर्द, चुभन टाइप की होती है, उस टाइप की। कुछ खाया नहीं जाता है, उल्टियाँ हो जाती हैं बार-बार। पहले तो फिर डॉक्टर से संपर्क किया था, फिर दवाई बताई थी उन्होंने, तो घर पर ही दवाई दे दी थी। लेकिन कुछ देर के लिए आराम होता था, एक-दो घंटे के लिए, देन पूरे टाइम के लिए आराम नहीं होता था। तो फिर उन्होंने बोला कि ड्रिप लगवा दो, तो फिर घर पर ड्रिप लगवाई थी, ठीक हो गया था। कभी-कभी घर पर ठीक नहीं होता था, तो फिर हॉस्पिटलाइज करना पड़ता था।”
ये सिलसिला सालों तक चलता रहा। राशि बताती है, “यह सिलसिला कई सालों तक चलता ही रहा, अब तक चला है, लेकिन अब आके आराम हुआ है मुझे। स्कूल में जब थे, तो फिर कभी-कभी पेट में दर्द हो जाता था, स्कूल में। उल्टियाँ वगैरह भी हो जाती थीं, स्कूल में, तो फिर वहीं से, लेकिन आना पड़ता था। दरअसल, अभी हॉस्टल में रहती थी मैं, तो वहाँ पेट बार-बार हो जाता था, मुझे एक-दो महीने के अंदर ही हो जाता था अब भी। अब पीछे 23 में, फिर वहाँ से बार-बार बुलाना पड़ता था, परहेज करना था, तो फिर अब वहाँ से नाम कटा था। इस वजह से बहुत ज़्यादा नुकसान हुआ था पढ़ाई में भी, एग्ज़ाम भी कई सारे छूट गए थे इसके वजह से।”
एक दिन, राशि के पिताजी के एक परिचित, जो आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं, ने उन्हें एक ख़ास जगह के बारे में बताया। राशि बताती है, “जहाँ जो वो भी आयुर्वेदिक के हैं, पापा के वहाँ से दवाई चलती थी, बैक पेन की, तो उन्होंने बोला, मतलब उन्होंने, उनको हमने दिखाया कि यह बीमारी है हमारे पास में, तो फिर उन्होंने बोला कि यहाँ पर बहुत अच्छा ट्रीटमेंट होता है, यहाँ कुछ अलग ही होता है इस पेन में, बहुत ज़्यादा चुभन टाइप का होता है यह पेन, अपर एब्डोमेन में, वो अपर और उल्टियाँ भी आती हैं इसके वजह से, कुछ खा भी नहीं पाते, पढ़ाई में भी बहुत ज़्यादा हो जाता है।”
राशि उस जगह के बारे में बताती हुई कहती है, “पहले दिन जब हम यहाँ पर आए थे, तो फिर पहले तो डॉक्टर रियाशीता से मिले थे, उन्होंने सारा फॉलो-अप किया, फिर हमारी सारी रिपोर्ट्स जो थीं, वो अपने फ़ाइल में नोट कीं। फिर हम वैद्य शिकाजी से मिले थे, उन्होंने फिर यहाँ पर रुकने के लिए बोला, अच्छे से इलाज के लिए। उन्होंने बोला कि आप ठीक हो जाओगे, बस आप डाइट प्लान ठीक से रखो अपना और यह अपना जो दिनचर्या है, उसे बदलो तुम अपनी दिनचर्या को।”
अगले 20 दिनों का ज़िक्र करते हुए राशि बताती है, “अगले के 20 दिनों में, हमें, पहले तो हमारे टेस्ट हुए। टेस्ट और नॉर्मल आए। अगर हमारे नॉर्मल आते हैं, तो सब कुछ ठीक रहता है, वरना फिर और कुछ मेडिसिन जैसे हैं। मेडिसिन हर पाँच जनों के साथ आते हैं कि यहाँ रहते हैं तो। और यहाँ रहते हैं, तो तो भी, डॉक्टर से बात होते ही हैं। हमारी दिन में दो-चार बार ऐसे बात होती रहती है यहाँ पर जो डॉक्टर्स रहते हैं, शिका मैम से भी बात होती है हमारी, होती रहती है। और ब्रेकफास्ट वगैरह सब कुछ ठीक-ठाक होता है यहाँ पे। सो जाते हैं हम दस बजे सो जाते थे और छह-सात बजे, आठ घंटे की नींद लेना यहाँ पे है, जो यहाँ पे पड़ाव में जो सबसे बड़ा रोल प्ले करता है यहाँ की डाइट। डाइट इसमें बहुत अहम चीज़ है और अगर आप डाइट सही से करोगे तभी आपका यह ठीक हो पाएगा, पैंक्रियाटाइटिस। सुबह को चार बजे उठ जाना होता था, फिर दो गिलास आप पानी पी लो और फिर थोड़ी देर टहल लो।”
डाइट के बारे में बताते हुए राशि कहती है, “यह होता था शुरुआत में, डाइट के। उसके बाद में, आठ बजे ब्रेकफास्ट होता था, ब्रेकफास्ट में ऐसे हल्का, फ्रूट्स वगैरह, और प्रोटीन वाली चीजें, चना वगैरह, ये सब देते थे। और फिर ग्यारह बजे थोड़े से स्नैक्स, हल्का-हल्का स्नैक्स। एक बजे के लिए लंच होता था और उसमें आपको सलाद, पापड़ वगैरह और राइस, यह सब चीजें दी जाती थीं। फिर चार बजे भी स्नैक्स के लिए बोला जाता था, स्नैक्स भी। चार बजे, इससे जैसे 11 बजे होता था, वैसे 4 बजे। उसके बाद में 7 बजे लंच, वो डिनर होता था। डिनर में रोटी, दो रोटी और सब्जी वगैरह, नॉर्मल। फिर रात को, पोस्ट डिनर स्नैक्स होता था, 9 बजे को। उसमें भी कुछ हल्का, जैसे दूध, खजूर ले लिया, ऐसे ही।”
उस जगह पर जाने से पहले के अनुभवों को याद करते हुए राशि कहती है, “पड़ाव में आने से पहले भी कई सारे डिफरेंसेज थे, वहाँ पे, मतलब और जगह भी कराया था, हमने एडमिट हुई थी मैं, वहाँ पे तो सिर्फ ड्रिप लगा देते थे और ठीक है, बस, मेडिसिन्स देते थे, बहुत सारी, और यहाँ पे पड़ाव में आकर तो अच्छा है, और मतलब ड्रिप भी नहीं लगा, ड्रिप लगाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है यहाँ पे, सिर्फ मेडिसिन्स देते, वो भी हल्की-फुल्की, उससे ही ठीक हो जाता है। जो यहाँ से पड़ाव से अलग जो हॉस्पिटल्स हैं, वहाँ पे ज़्यादा डॉक्टर से मुलाकात नहीं हो पाती थी। दो-तीन दिनों में ऐसे डॉक्टर आते थे और देखकर चले जाते थे। लेकिन पड़ाव में तो हम किसी भी टाइम डॉक्टर से बात कर सकते हैं, किसी भी टाइम, किसी भी चीज़ के लिए।”
इलाज के दौरान की एक ख़ास बात बताते हुए राशि कहती है, “और यहाँ पे ट्रीटमेंट होता था, तो फिर आपको सब कुछ लिखने के लिए बोला गया था पहले। तो अपनी डायरी में आप लिखो और फिर जैसे यहाँ पे खिलाया जा रहा है, जैसे यहाँ पे कराया जा रहा है, वैसे ही आप अपने घर पे करना। 21 दिनों के बाद में और घर पर जाकर ईमेल करना सारी बातें, जो जो आपने खाया, जो जो करा आपने, वो सारी ईमेल करना और हम फिर बताएँगे कि यह ठीक है या फिर नहीं। जब हम यहाँ पाएँ, तो फिर कई सारे लोग आते थे जिनका पहले ट्रीटमेंट हो चुका है। वो सब आके कहते थे कि यह बहुत अच्छा है, यहाँ पर सब कुछ ठीक हो जाएगा। उनको भी ऐसी पैंक्रियाटाइटिस थी, तो फिर उन्होंने बोला कि सब कुछ ठीक हो जाएगा, हमने भी ऐसे कराया है, तो फिर हमारा अब कुछ ठीक है, सब कुछ। इसी बात से फिर हमें विश्वास हुआ कि सब कुछ अब ठीक होगा, इतने सारे लोग कह रहे हैं, डॉक्टर से कह रहे हैं, तो फिर ठीक हो जाएगा, हमने। इसका इलाज ठीक से कराएँ और फिर यह ठीक हो जाएँ।”