साल 2009 की बात है. सरकारी नौकरी करने वाले राजीव कुमार शर्मा एक रोज दोपहिया वाहन पर सवार थे और ऋषिकेश से देहरादून आ रहे थे. तभी पेट में तेज दर्द उठा. किसी तरह वह घर पहुंचे और डॉक्टर के पास गए. अस्पताल में भर्ती होने के बाद, डॉक्टर ने इलाज शुरू किया. एक हफ्ते में वह डिस्चार्ज हो गए, लेकिन पेट में दर्द की वजह जानने का सवाल रह गया. एक साल बाद, 2010 में वही दर्द फिर हुआ, और इस बार और भी ज्यादा.
राजीव अस्पतालों में भटकते रहे. डॉक्टरों से टेस्ट कराने के बाद उन्हें पैनक्रिएटाइटिस का पता चला. उन्होंने शराब और तंबाकू को अपनी आदतों में शामिल किया था, और यह बीमारी उन चीजों से और बढ़ी. इलाज के दौरान, राजीव को एहसास हुआ कि इन आदतों ने उनकी हालत को और बिगाड़ दिया था.
2012 में एक दोस्त ने उन्हें पीजीआई में इलाज कराने की सलाह दी. सालभर इलाज के बाद डॉक्टर ने कहा कि पैनक्रियाज में कोई समस्या नहीं है. इसके बाद, राजीव ने कई शहरों में इलाज कराया, लेकिन दर्द खत्म नहीं हुआ. 2016 में पीजीआई में स्टेंट डाला गया, फिर भी दर्द नहीं गया.
इसी बीच, एक दोस्त ने उन्हें ‘पड़ाव’ के बारे में बताया. राजीव वहां गए और 21 दिन तक इलाज करवाया, जिसे वह अपना “गोल्डन पीरियड” मानते हैं. पड़ाव में उन्हें खाने-पीने का सही रूटीन मिला और दवाइयों से राहत मिली. अब राजीव मानते हैं कि सही रूटीन और इलाज से ही उनकी हालत ठीक हुई.
उन्होंने बताया कि शराब और तंबाकू पैनक्रियाटाइटिस के मरीजों के लिए जहर साबित हो सकते हैं. अब वह दूसरों को भी इनसे दूर रहने की सलाह देते हैं. राजीव का अनुभव बताता है कि पैनक्रियास से संबंधित समस्याओं का तुरंत इलाज पड़ाव जैसे केंद्रों से कराना चाहिए.