नमस्कार, मेरा नाम नाज़िया हसन है और मैं बिहार के पूर्णिया ज़िले से हूँ। आज मैं अपनी कहानी आपसे साझा कर रही हूँ, एक ऐसी कहानी जो दर्द, निराशा और अंततः आशा से भरी है।
यह कहानी है मेरी पैंक्रियाटाइटिस से जंग की, एक ऐसी बीमारी जिसने मेरी ज़िंदगी को 9 साल की उम्र से ही जकड़ लिया था। शुरुआत में तो पता ही नहीं था कि यह क्या है। कुछ भी खाती, दर्द होता। खेलते-कूदते, शादी में जाते, हर जगह दर्द पीछा करता। मेरे चार भाई-बहन एक ही खाना खाते, उन्हें कुछ नहीं होता, मुझे दर्द से कराहना पड़ता। मम्मी-पापा बस यही कहते, “मत खाया करो, यह क्यों खाती हो, वो क्यों खाती हो?” उन्हें यह समझ ही नहीं आया कि बाकी बच्चों को क्यों नहीं होता।
धीरे-धीरे दर्द बढ़ता गया, स्कूल जाना मुश्किल हो गया, छठी क्लास के बाद पढ़ाई छूट गई। साल में दो-तीन बार दर्द के दौरे पड़ते, दसवीं के बाद तो दर्द असहनीय हो गया। बता भी नहीं पाती थी, ऊँगली उठाने की भी ताकत नहीं रहती थी। डॉक्टर कहते, “गैस है, कुछ नहीं है।”
दर्द से तंग आकर डॉक्टर ने गॉलब्लैडर में स्टोन बताया, ऑपरेशन की तैयारी हुई। पर ऑपरेशन से पहले पता चला स्टोन गायब! डॉक्टर ने बताया कि स्टोन गॉलब्लैडर से पैंक्रियाज़ में चला गया है।
बीमारी के कारण मैं आगे पढ़ नहीं पाई, डिप्रेशन में चली गई। लोगों ने कहा, “शादी करा दो, ठीक हो जाएगी।” डॉक्टरों ने भी यही सलाह दी। 19 साल की उम्र में मेरी शादी हो गई।
शादी के बाद भी दर्द कम नहीं हुआ, उल्टा बढ़ता गया। शादी के तुरंत बाद गर्भवती हो गई, नौ महीने हर रोज़ मौत से लड़ती रही। बच्ची होने के बाद भी दर्द के दौरे पड़ते रहे। आखिरकार एक दिन हिम्मत करके अकेले ही डॉक्टर के पास गई, सारे टेस्ट करवाए। रिपोर्ट देखकर डॉक्टर ने बताया, “क्रोनिक पैंक्रियाटाइटिस है, पैंक्रियाज़ में स्टोन है, 60% डैमेज हो चुका है।” मैं खुश हो गई कि चलो बीमारी का पता तो चला। पर डॉक्टर ने कहा, “इसका कोई इलाज नहीं है।” ज़िंदगी भर दवाइयाँ खानी पड़ेंगी, दर्द से जूझना पड़ेगा।
डॉक्टर की बात सुनकर मैं टूट गई। आखिरकार 22 साल की उम्र में डॉक्टर ने सर्जरी की सलाह दी। सर्जरी हुई, दर्द और बढ़ गया। कुछ महीनों बाद फिर से दर्द के दौरे शुरू हो गए। लगभग 3 साल दिल्ली के बड़े-बड़े अस्पतालों में इलाज करवाया, पर कोई फायदा नहीं हुआ।
एक दिन हारकर डॉक्टर के पास रोई, चिल्लाई, “कुछ तो इलाज होगा, कुछ तो बताइए!” तब उन्होंने बताया कि मेरी उम्र कम है, इसलिए सर्जरी एक विकल्प हो सकती है। सर्जरी में पैंक्रियाज़ से स्टोन निकालने की कोशिश की जाएगी। 2016 में मेरी सर्जरी हुई, तीन दिन आईसीयू में रही, दर्द असहनीय था। पर सर्जरी के बाद भी दर्द के दौरे आते रहे।
मैं पूरी तरह टूट चुकी थी, वज़न 30 किलो रह गया था। मेरे पति, परि
वार, सब परेशान थे। तभी एक दिन मेरे पति गूगल पर सर्च कर रहे थे, “इंडिया में इलाज नहीं तो बाहर तो होगा।” तभी उन्हें पड़ाव आयुर्वेदा का लिंक दिखा, जहाँ पैंक्रियाटाइटिस का सफल इलाज होने का दावा किया गया था।
पहले तो मुझे यकीन नहीं हुआ, “आयुर्वेद क्या करेगा? जड़ी-बूटी, फालतू में पैसा बर्बाद।” पर पति ने ज़िद की, पड़ाव के पूर्व मरीज़ों से बात करवाई, उनकी कहानियाँ सुनी। तब जाकर मुझे थोड़ी उम्मीद जगी।
2017 में मैं पड़ाव आयुर्वेदा पहुँची, आसमान की तरफ देखकर कहा, “यह आखिरी उम्मीद है।” पहले तो एलोपैथिक दवाइयाँ छोड़ने में बहुत तकलीफ हुई, पर धीरे-धीरे आराम मिलने लगा। 21 दिन के बाद जब मैं पड़ाव से डिस्चार्ज हुई तो मुझे भूख लगने लगी थी, खाना खाने के बाद जलन नहीं हो रही थी। मुझे लगा कि मैं ठीक हो रही हूँ।
एक साल तक पड़ाव के वैद्य जी के संपर्क में रही, दवाइयाँ लेती रही। दर्द के दौरे आते रहे, पर पहले जितने شدید नहीं। धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा, वज़न बढ़ने लगा। पर एक साल बाद भी पूरी तरह ठीक नहीं हुई थी।
तब मैं पड़ाव की वैद्य शिखा प्रकाश जी के संपर्क में आई। उन्होंने मुझे बहुत सहारा दिया, मेरी हर छोटी-बड़ी बात ध्यान से सुनी। एक साल तक उनके मार्गदर्शन में दवाइयाँ लेती रही, अपनी दिनचर्या में बदलाव किए। धीरे-धीरे मेरा दर्द पूरी तरह गायब हो गया, वज़न बढ़ने लगा, मैं फिर से ज़िंदगी जीने लगी।
आज 8 साल हो गए हैं मुझे पड़ाव आयुर्वेदा में, और मैं एक सामान्य ज़िंदगी जी रही हूँ। सब कुछ खा पाती हूँ, घूम पाती हूँ, अपने बच्चों को बड़ा होते देख पा रही हूँ। पड़ाव आयुर्वेदा ने मुझे एक नई ज़िंदगी दी है।
मैं पड़ाव आयुर्वेदा की पूरी टीम, विशेषकर वैद्य शिखा प्रकाश जी और वैद्य बालेंदु प्रकाश जी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ। उन्होंने मुझे न सिर्फ शारीरिक रूप से ठीक किया, बल्कि मानसिक रूप से भी मज़बूत बनाया।
अगर आप भी पैंक्रियाटाइटिस से पीड़ित हैं, या आपके किसी जानने वाले को यह बीमारी है, तो निराश न हों। पड़ाव आयुर्वेदा में आपका इलाज संभव है।
ज़िंदगी फिर से खिलखिला उठेगी, बस एक बार पड़ाव आयुर्वेदा का दरवाज़ा खटखटा कर देखिए।