साल 2018 में संस्कृति, जो उस समय सिर्फ आठ साल की थीं, फास्ट फूड की शौकिन थीं। स्वादिष्ट तला-भुना और चटपटा खाना उनके लिए आकर्षण का केंद्र था। लेकिन इस खाने की आदतें एक गंभीर बीमारी का कारण बन गईं, जिसका परिवार को अंदाजा भी नहीं था। मयंक सिंह गौर, संस्कृति के पिता, बताते हैं कि जब पहली बार बेटी को पैनक्रिएटाइटिस (Pancreatitis) का अटैक आया, तो उन्होंने इसे सामान्य एसिडिटी समझा और घर पर दवा दी। लेकिन दर्द में कोई राहत नहीं मिली, तो उन्हें प्राइवेट Hospital ले जाना पड़ा। अस्पताल की रिपोर्ट में पैनक्रिएटाइटिस का पता चला, जो उन्हें हैरान कर गया।
अस्पताल के इलाज के बाद भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ, और संस्कृति फिर से दर्द से परेशान होने लगी। मयंक ने अपनी पैथलॉजी रिपोर्ट्स और अस्पताल की रिपोर्ट्स की तुलना की, तो यह साबित हो गया कि बीमारी गंभीर थी। इस समय, उन्हें पता चला कि आयुर्वेदिक इलाज भी उपलब्ध है। शुरू में मयंक को आयुर्वेद पर संदेह था, लेकिन जब संस्कृति को वैद्य शिखा जी से इलाज मिला, तो उनका दृष्टिकोण बदल गया। इलाज के पहले दिन से ही संस्कृति के स्वास्थ्य में सुधार दिखने लगा।
मयंक कहते हैं, “हमने अनुभव किया कि आयुर्वेद का इलाज लंबा और प्रभावी होता है।” वे मानते हैं कि उनकी बेटी को सही इलाज और आहार से पूरी तरह ठीक किया गया। 20 दिनों बाद टेस्ट कराए गए और परिणाम सकारात्मक रहे। इलाज के दौरान, वे हमेशा वैद्य शिखा प्रकाश जी से सलाह लेते रहे और उनकी मदद से संस्कृति पूरी तरह ठीक हो गई। मयंक का कहना है कि आयुर्वेद और डाइट प्लान ने उनकी बेटी को नई जिंदगी दी।
आज भी मयंक और संस्कृति का जीवन सामान्य हो चुका है। मयंक मानते हैं कि पड़ाव केंद्र और वैद्य शिखा जी का आभार व्यक्त करते हुए उनका परिवार अब पूरी तरह स्वस्थ है।