एक जाने-माने वैद्य, बालेंदु प्रकाश, ने पैंक्रियाटाइटिस को लेकर अपने गहरे अनुभव और जानकारी साझा की। उन्होंने खुद को एक पारंपरिक गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट की तरह नहीं, बल्कि एक ऐसे डॉक्टर के रूप में पेश किया जिसने दशकों तक इस बीमारी का इलाज किया है। उनका संदेश एक अनोखी सोच पेश करता है जो आधुनिक जांच विज्ञान और उनके पारंपरिक इलाज को एक साथ जोड़ती है।
आत्मविश्वास के साथ इलाज की शुरुआत
वैद्य प्रकाश की यात्रा एक दुखद घटना के साथ शुरू हुई। 1984 में जिस दिन उन्हें अपनी मेडिकल की डिग्री मिली, उसी दिन उनके पिताजी को दिल का दौरा पड़ा। पिताजी के ठीक होने के दौरान, चंडीगढ़ से एक मरीज उनके पास आया, जो गंभीर पैंक्रियाटाइटिस से पीड़ित था, उसका पेट फूला हुआ था, और उसे तेज बुखार था। उनके पिताजी ने मरीज की हालत देखकर कहा कि यह लाइलाज है। लेकिन वैद्य प्रकाश ने अपने पिताजी की अनुपस्थिति में उस मरीज का इलाज करने का फैसला किया। कड़ी मेहनत और एक पुरानी दवा के दम पर, मरीज पूरी तरह ठीक हो गया। उसके पेट में मौजूद बड़ी सी गांठ धीरे-धीरे सख्त होकर ठीक हो गई। इस सफलता ने वैद्य प्रकाश का आत्मविश्वास बहुत बढ़ाया और उन्हें इस इलाज पर अपना जीवन समर्पित करने के लिए प्रेरित किया।
चौंकाने वाली सच्चाई: आधुनिक जीवन में पैंक्रियाटाइटिस
वैद्य प्रकाश के अनुसार, पैंक्रियाटाइटिस एक लगातार बढ़ने वाली बीमारी है जो आजकल युवाओं में बहुत आम हो गई है। वह एक मरीज का उदाहरण देते हैं जिसने कहा कि हड्डी टूटने से ज्यादा दर्द पैंक्रियाटाइटिस में होता है, और एक मेजर का जो कहता है कि गोली लगने का दर्द भी इतना नहीं था। इस बीमारी में, अग्नाशय के पाचक रस बाहर नहीं निकल पाते और अंग को ही अंदर से खाना शुरू कर देते हैं – इस प्रक्रिया को ऑटोफेगी (Autophagy) कहते हैं, जिसमें “रक्षक ही भक्षक बन जाता है।”
उनके क्लिनिक के अनुभव, सामान्य धारणाओं को चुनौती देते हैं। अपने मरीजों के रिकॉर्ड की गहराई से जांच करने पर उन्हें कुछ चौंकाने वाले आंकड़े मिले:
- कहां ज्यादा मरीज: प्रचलित मान्यताओं के उलट, उनके पास सबसे ज्यादा मरीज उत्तर प्रदेश से आते हैं, उसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात और दिल्ली से।
- शराब का असर: आम धारणा के विपरीत, उनके 67% मरीजों ने कभी शराब नहीं पी थी, और 20% ने कभी खुद से शराब नहीं खरीदी थी। इससे यह साबित होता है कि सिर्फ शराब को ही इसका कारण मानना गलत है और दूसरे कारणों पर ध्यान देना जरूरी है।
- देर से सोना: एक बहुत ही चौंकाने वाला तथ्य यह है कि उनके 93% मरीज देर रात तक जागते थे। वह इसे नींद की कमी से जोड़ते हैं, जिससे शरीर को मेलाटोनिन (Melatonin) हार्मोन नहीं मिल पाता, और इससे लिवर और पैंक्रियाज में सूजन बढ़ती है।
पैंक्रियाटाइटिस को समझना: एक्यूट और क्रॉनिक
वैद्य प्रकाश कैम्ब्रिज क्लासिफिकेशन के अनुसार, एक्यूट और क्रॉनिक पैंक्रियाटाइटिस के बीच का अंतर समझाते हैं, जो अक्सर लोग समझ नहीं पाते।
- एक्यूट पैंक्रियाटाइटिस: इसमें पैंक्रियाज में सूजन तो होती है, लेकिन जांच में कोई स्थायी संरचनात्मक बदलाव नहीं दिखता। भले ही मरीज को 10 या 50 अटैक आए हों, अगर अंग की बनावट सही रहती है, तो उसे एक्यूट ही माना जाता है।
- क्रॉनिक पैंक्रियाटाइटिस: इसका पता तब चलता है जब पैंक्रियाज में कोई स्थायी बदलाव (नुकसान) दिख जाए, भले ही मरीज को कभी अटैक आया हो या नहीं।
उनके इलाज का मुख्य लक्ष्य एक्यूट पैंक्रियाटाइटिस को क्रॉनिक होने से रोकना है, और क्रॉनिक को और गंभीर होने से रोकना है।
इलाज का तरीका: पारंपरिक और आधुनिक का मेल
वैद्य प्रकाश अपने इलाज को आधुनिक जांच और पारंपरिक तरीकों का मेल बताते हैं।
1. जांच और आपातकालीन देखभाल: वह बीमारी की पुष्टि और प्रगति की निगरानी के लिए सीटी स्कैन और एमआरसीपी जैसी आधुनिक जांच का इस्तेमाल करते हैं। गंभीर अटैक के दौरान तुरंत राहत के लिए, वह आधुनिक आपातकालीन दवाएं और दर्द निवारक देते हैं, जो उनके इलाज के असर करने तक अस्थायी होते हैं।
2. “अमर” दवा: उनकी मुख्य दवा, जिसे “अमर” कहा जाता है, एक साल तक दी जाती है। वह बताते हैं कि इसका कोई तय समय नहीं है, लेकिन उनके आंकड़ों के अनुसार 90% मरीज एक साल बाद स्वस्थ रहते हैं। यह दवा बीमारी की जड़ पर काम करती है, इसलिए मरीजों को धीरे-धीरे दर्द निवारक और पाचक एंजाइमों की जरूरत नहीं रहती।
3. खान-पान और जीवनशैली: उनका प्रोटोकॉल एक अनुशासित दिनचर्या पर जोर देता है, जिसे आहार-विहार कहते हैं। इसमें दिन में तीन बार मुख्य भोजन और तीन बार हल्का नाश्ता (लगभग 2000-2200 कैलोरी) शामिल होता है। वह निश्चित समय पर खाने, हर दिन 25-30 मिलीलीटर वसा लेने और भोजन के दौरान घूंट-घूंट पानी पीने की सलाह देते हैं। पर्याप्त नींद लेना बहुत जरूरी है, साथ ही शारीरिक और मानसिक आराम भी। उनका इलाज लिवर की सुरक्षा, पाचन को बेहतर बनाने और विटामिन बी12 और डी3 जैसे पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए भी दवाएं देता है, जो उनके शोध में 84% मरीजों में पाई गई हैं।
सफलता, सबूत और एक आखिरी अपील
वैद्य प्रकाश के अनुसार, उनके इलाज की सफलता को कई पैमानों पर मापा जाता है: मरीज का एक साल तक लक्षणों से मुक्त रहना, सभी जांच रिपोर्टों का सामान्य होना, एमआरसीपी में बीमारी का न बढ़ना और शरीर का स्वस्थ वजन वापस पाना। लेकिन, उनका कहना है, सफलता का सबसे बड़ा सबूत मरीज का खुद का अनुभव होता है कि वह ठीक है। वह दावा करते हैं कि 70% से अधिक मरीज हमेशा के लिए स्वस्थ जीवन जीते हैं।
वह एक और महत्वपूर्ण आंकड़ा बताते हैं: जहां आम तौर पर 20-55% पैंक्रियाटाइटिस मरीजों को कैंसर हो जाता है, वहीं उनके 30 सालों के आंकड़ों में 2,200 मरीजों में से केवल एक को ही कैंसर हुआ। यह मरीज आनुवंशिक पैंक्रियाटाइटिस से पीड़ित था और 27 साल तक इलाज के बाद उसकी मृत्यु हो गई।
अंत में, वह अपनी बात को खत्म करते हुए कहते हैं कि भले ही उनका काम अनुभव पर आधारित है, लेकिन इसमें बड़े पैमाने पर वैज्ञानिक प्रमाणों की कमी है। वह सरकार और समाज से अपील करते हैं कि वे उनके शोध में मदद करें ताकि इस बीमारी के लिए एक स्थायी समाधान मिल सके। उनका मानना है कि ऐसा करके भारत पैंक्रियाटाइटिस का इलाज ढूंढने में दुनिया का नेतृत्व कर सकता है।